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USA के Federal Reserve की घटाई ब्याज दर से कैसा पड़ेगा India पर असर ?

USA के Federal Reserve ने चार साल के इंतजार के बाद ब्याज दर में कटौती कर दी है. federal reserve की तरफ से 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती की गई है. इसके बाद अमेरिका में ब्याज दरें 4.75% से 5% के बीच हो गई हैं.
federal reserve रल ओपन मार्केट कमेटी (FOMC) की दो दिन तक चली मीटिंग में यह फैसला किया गया. आपको बता दें FOMC अमेरिका में ब्याज दर तय करने वाली अथॉरिटी है. बैठक के बाद अमेरिका federal reserve के अध्यक्ष जेरोम पॉवेल ने बताया कि अमेरिका की अर्थव्यवस्था मजबूत है और महंगाई काफी कम हो गई है. federal reserve के 12 सदस्यों में से 11 ने ब्याज दर कटौती के पक्ष में वोटिंग की.

अमेरिका में महंगाई दर 7 प्रतिशत से घटकर 2.2 प्रतिशत पर आई
एफओएमसी बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए जेरोम पॉवेल ने कहा अमेरिका की इकोनॉमी मजबूत है. पिछले दो साल में हमने टारगेट को हासिल करने में अहम प्रगति की है. लेबर मार्केट अपनी पहले की स्थिति से नॉर्मल हो गया है.

अगस्त में महंगाई दर 7 प्रतिशत के हाई लेवल से घटकर 2.2 प्रतिशत के करीब आ गई है. उन्होंने बताया कि अब महंगाई का रिस्क भी काफी कम हो गया है. federal reserve की तरफ से आखिरी बार मार्च 2020 में ब्याज दर में कटौती की गई थी. अमेरिका में एक महीने बाद होने वाले राष्ट्रपति चुनाव से पहले यह federal reserve की तरफ से जनता को दी गई बड़ी राहत है.
federal reserve की कटौती से अमेरिकी शेयर बाजार में तेजी
कटौती से पहले federal reserve की दरें 5.25 से 5.5 प्रतिशत के बीच रहीं, जो कि 23 साल में सबसे ज्यादा थीं. USA federal reserve की तरफ से कटौती का फैसला होने के बाद अमेरिकी शेयर बाजार में भी तेजी देखी गई.

इस खबर के बाद डाउन जोन्स 250 अंक और नैस्डैक 190 अंक चढ़ गया. माना जा रहा है कि federal open market committee (FOMC) के फैसले का असर भारत सहित दुनियाभर के शेयर बाजार में देखने को मिलेगा. बुधवार को 82,948 अंक पर बंद हुए सेंसेक्स और 25,377 अंक पर बंद हुए निफ्टी में आज तेजी आने की उम्मीद है.
भारत में क्या होगा असर ?
federal reserve की तरफ से ब्याज दर में 50 बेसिस प्वाइंट की कटौती के बाद इसका असर दुनियाभर के बाजार में देखने को मिलेगा. कटौती के बाद गुरुवार को भारतीय शेयर बाजार में तेजी दिखाई देने की उम्मीद है.कई जानकारों का मानना है कि इस कटौती का असर आने वाले समय में गोल्ड मार्केट दोनों में देखने को मिलेगा. ब्याज दर में कटौती का मतलब है कि अमेरिका में सरकारी बॉन्डों पर भी ब्याज दरों में कमी.

इससे निवेशक अपना पैसा बॉन्ड में लगाने की बजाय शेयर बाजार में थोड़ा और रिस्क उठाना पसंद करेंगे. इस समय भारतीय शेयर बाजार निवेशकों की पहली पसंद बने हुए हैं. इसके अलावा डॉलर पर दबाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. एक्सपोर्ट कंपनियों पर federal reserve रिजर्व का फैसला निगेटिव असर डाल सकता है.
आरबीआई पर बढ़ेगा दबाव !

federal reserve के फैसले के बाद देखने वाली बात यह है कि घरेलू बाजार में ब्याज दर में कितनी कटौती होती है. federal reserve के ब्याज दर घटाने से आरबीआई पर दबाव बढ़ेगा. घरेलू बाजार में खुदरा और थोक महंगाई दर में गिरावट देखी जा रही है. इसका असर अक्टूबर में होने वाली एमपीसी में नीतिगत दर को कम करने के रूप में देखा जा सकता है.
इसको लेकर बाजार लंबे समय से मांग कर रहा है. लेकिन कुछ जानकारों का कहना है कि अभी आरबीआई इसको लेकर जल्दी नहीं करेगा और दिसंबर में होने वाली एमपीसी में ब्याज दर कम किये जाने की उम्मीद है. इसके बाद सभी प्रकार के लोन की ब्याज दर कम हो सकती है.

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नारायण मूर्ति का मुफ्तखोरी पर तीखा प्रहार, रोजगार और नवाचार पर दिया जोर

इन्फोसिस के सह-संस्थापक एन.आर. नारायण मूर्ति ने हाल ही में मुंबई में आयोजित टाईकॉन 2025 सम्मेलन में मुफ्तखोरी की संस्कृति पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने कहा कि गरीबी को समाप्त करने के लिए मुफ्त सुविधाएं देना कोई समाधान नहीं है, बल्कि रोजगार सृजन और नवाचार ही इसका सही उत्तर है। मूर्ति ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के अति-प्रचार पर भी चिंता जताई और इसे केवल पुराने प्रोग्रामों को नए नाम से पेश करने का प्रयास बताया।
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मुफ्त सुविधाओं से नहीं मिटेगी गरीबी
टाईकॉन मुंबई 2025 में अपने संबोधन के दौरान मूर्ति ने कहा कि भारत जैसे विकासशील देश को मुफ्तखोरी की संस्कृति से बचना चाहिए और इसकी बजाय नौकरियां पैदा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। उन्होंने कहा, “आप मुफ्त की चीजें देकर गरीबी की समस्या का समाधान नहीं कर सकते। कोई भी देश इस मॉडल के जरिए सफल नहीं हुआ है।” उन्होंने नीति निर्माताओं और उद्योगपतियों से अपील की कि वे नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दें जिससे देश में नए अवसर पैदा हों।

उनका मानना है कि नवाचार ही वह माध्यम है जिससे गरीबी दूर हो सकती है। मूर्ति ने जोर देकर कहा कि किसी भी देश की अर्थव्यवस्था तभी मजबूत हो सकती है जब उसके नागरिक आत्मनिर्भर बनें और अपनी प्रतिभा व मेहनत से समाज में योगदान दें। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सरकारी सहायता के साथ जवाबदेही भी होनी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि इसका सही उपयोग हो रहा है।
मुफ्तखोरी के प्रभाव पर मूर्ति का नजरिया
मूर्ति ने मुफ्त बिजली जैसी योजनाओं पर भी विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि यदि सरकारें 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देती हैं, तो उन्हें छह महीने बाद लाभार्थियों पर अध्ययन करना चाहिए कि क्या इससे उनके जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव आया है। उदाहरण के तौर पर, क्या इससे बच्चों की शिक्षा पर ध्यान बढ़ा है या माता-पिता की बच्चों में रुचि बढ़ी है? उन्होंने कहा कि किसी भी सरकारी योजना की सफलता का आकलन करने के लिए ऐसे कदम आवश्यक हैं।

मूर्ति का यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत में 80 करोड़ से अधिक लोग सरकारी सहायता पर निर्भर हैं और मुफ्तखोरी बनाम आर्थिक विकास पर एक व्यापक बहस चल रही है। सुप्रीम कोर्ट भी मुफ्त योजनाओं की व्यवहार्यता पर सवाल उठा चुका है, जिससे यह विषय और अधिक प्रासंगिक हो गया है।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर नारायण मूर्ति की राय
मूर्ति ने अपने भाषण में AI के अति-प्रचार पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि कई तथाकथित AI सॉल्यूशन केवल पुराने प्रोग्राम हैं जिन्हें नए नामों के साथ प्रस्तुत किया गया है। उनका कहना था कि AI का उपयोग केवल दिखावे के लिए नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे वास्तविक समस्याओं के समाधान के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने उद्यमियों से आग्रह किया कि वे देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए नए समाधान विकसित करें जो आर्थिक विकास को गति दें।

उन्होंने कहा कि AI के सही इस्तेमाल से भारत में रोजगार के नए अवसर उत्पन्न किए जा सकते हैं। मूर्ति का मानना है कि नवाचार और सही नीतियों के माध्यम से देश को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है और इसे एक वैश्विक आर्थिक शक्ति के रूप में स्थापित किया जा सकता है।
नीतिगत सुझाव, न कि राजनीतिक बयान
अपने विचारों को स्पष्ट करते हुए मूर्ति ने यह भी कहा कि उनकी टिप्पणियां किसी राजनीतिक दल की आलोचना करने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह नीतिगत सुझाव हैं। उन्होंने कहा, “मैं किसी सरकार या राजनीतिक दल पर उंगली नहीं उठा रहा हूं। मैं केवल यह कह रहा हूं कि हमें सही दिशा में प्रयास करने की जरूरत है।”
उन्होंने उद्योग जगत के नेताओं और नीति निर्माताओं से आह्वान किया कि वे दीर्घकालिक योजनाएं बनाएं जो लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करें। उनका मानना है कि सरकार की भूमिका केवल एक सहायक की होनी चाहिए, न कि ऐसी संस्था की जो हर समस्या का समाधान मुफ्त में देने का प्रयास करे।
युवा पीढ़ी के लिए संदेश
नारायण मूर्ति ने युवाओं को भी संदेश दिया कि वे नौकरी खोजने के बजाय नौकरी देने वाले बनें। उन्होंने कहा, “मुझे विश्वास है कि आप में से हर कोई हजारों नौकरियां पैदा करेगा और गरीबी की समस्या का समाधान करेगा।” उनका मानना है कि भारत का भविष्य तभी उज्जवल होगा जब युवा अपने इनोवेशन और उद्यमशीलता के माध्यम से देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।

मूर्ति ने कहा कि नई तकनीकों और स्टार्टअप्स के माध्यम से भारत में लाखों नौकरियां सृजित की जा सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उद्योग जगत और सरकार को मिलकर काम करना चाहिए ताकि एक मजबूत आर्थिक ढांचा तैयार किया जा सके जो हर वर्ग के लिए लाभदायक हो।
एन.आर. नारायण मूर्ति का यह बयान भारत में चल रही मुफ्त योजनाओं और आर्थिक विकास की बहस के बीच आया है। उनका मानना है कि मुफ्त की चीजें देने से गरीबी नहीं मिटाई जा सकती, बल्कि इसके लिए रोजगार सृजन और नवाचार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने AI के सही उपयोग पर भी जोर दिया और कहा कि यह केवल एक ट्रेंड नहीं बल्कि आर्थिक विकास का एक महत्वपूर्ण माध्यम होना चाहिए।
मूर्ति के विचार नीति निर्माताओं, उद्योगपतियों और युवाओं के लिए एक मार्गदर्शन की तरह हैं। अगर भारत को एक सशक्त अर्थव्यवस्था बनाना है, तो मुफ्तखोरी की संस्कृति से बाहर निकलकर उद्यमिता और नवाचार को बढ़ावा देना अनिवार्य होगा।
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अमेरिकी बाजार में गिरावट, भारत पर क्या होगा असर क्या दुनिया पर फिर छाएंगे मंदी के काले बादल?

सोमवार को अमेरिकी बाजार में आई भारी गिरावट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को लेकर चिंता बढ़ा दी है। प्रमुख अमेरिकी शेयर बाजार नैस्डैक और S&P 500 में तेज गिरावट दर्ज की गई, जिससे मंदी की आशंका फिर से गहरा गई है। विश्लेषकों का मानना है कि अगर अमेरिका ने ट्रेड वॉर जैसी नीतियों को जारी रखा, तो वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी को रोक पाना मुश्किल हो सकता है। इस मंदी का असर भारत समेत पूरी दुनिया पर दिखाई देगा।
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अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट से हिली दुनिया
सोमवार को अमेरिकी शेयर बाजारों में भारी बिकवाली देखने को मिली। नैस्डैक इंडेक्स में करीब 4% की गिरावट आई, जिससे यह अपने छह महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया। वहीं, S&P 500 इंडेक्स अपने फरवरी के उच्चतम स्तर से 8% तक गिर चुका है, और दिसंबर में बने सर्वकालिक उच्चतम स्तर से 10% की गिरावट दिखा चुका है। इन गिरावटों ने अमेरिका की आर्थिक स्थिरता पर सवाल खड़े कर दिए हैं और निवेशकों में चिंता बढ़ा दी है।
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीतियां और चीन-अमेरिका ट्रेड वॉर इसकी प्रमुख वजहें हैं। इन नीतियों के कारण वैश्विक व्यापार प्रभावित हुआ है, जिससे निवेशकों में अस्थिरता बढ़ गई है। यदि इस स्थिति को जल्द नियंत्रित नहीं किया गया तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था मंदी के दलदल में फंस सकती है, जिसका असर अन्य देशों पर भी पड़ेगा।
मंदी की आशंका क्यों बढ़ रही है?
अमेरिका में मंदी की संभावना को लेकर कई वित्तीय संस्थानों ने अपने अनुमान बदल दिए हैं।
- गोल्डमैन सैक्स ने अमेरिका में मंदी की संभावना को 15% से बढ़ाकर 20% कर दिया है।
- जेपी मॉर्गन ने मंदी की आशंका को और अधिक गंभीर मानते हुए इसे 40% तक बढ़ा दिया है।
- फिच रेटिंग्स के क्षेत्रीय अर्थशास्त्र प्रमुख ओलु सोनोला ने कहा कि “मंदी का खतरा अब वास्तविकता बनता जा रहा है। यह एक ऐसा जोखिम है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।”

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में लगातार कमजोर होते संकेतों के कारण निवेशकों का भरोसा डगमगाने लगा है।
क्या मंदी के संकेत स्पष्ट हो चुके हैं?
अर्थशास्त्री मंदी को परिभाषित करने के लिए एक सरल मापदंड का उपयोग करते हैं—यदि किसी देश की अर्थव्यवस्था लगातार दो तिमाहियों तक संकुचित होती है, तो इसे मंदी माना जाता है। हालांकि अमेरिका अभी इस स्थिति तक नहीं पहुंचा है, लेकिन कई संकेत पहले ही मिल चुके हैं—
- उपभोक्ता विश्वास घट रहा है, जिससे लोग निवेश और खरीदारी में सतर्कता बरत रहे हैं।
- नौकरी बाजार में धीमापन देखा जा रहा है, जिससे बेरोजगारी दर बढ़ने की आशंका है।
- कंपनियां अपने निवेश में कटौती कर रही हैं, जिससे उत्पादन और आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं।
यदि अमेरिकी प्रशासन इस स्थिति को संभालने में असफल रहता है, तो आने वाले महीनों में अमेरिका आधिकारिक रूप से मंदी में प्रवेश कर सकता है।

भारत पर क्या होगा असर?
अमेरिकी मंदी का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी देखने को मिलेगा। विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गिरावट आने से भारतीय शेयर बाजार में और अधिक गिरावट आ सकती है।
- भारतीय शेयर बाजार पहले से ही दबाव में है। पिछले छह महीनों में सेंसेक्स 9% से अधिक गिर चुका है।
- अमेरिकी मंदी के कारण विदेशी निवेशक भारतीय बाजार से अपने निवेश निकाल सकते हैं, जिससे बाजार में अस्थिरता और बढ़ेगी।
भारतीय कंपनियों की अमेरिका पर निर्भरता ज्यादा है, खासकर आईटी, फार्मा और निर्यात आधारित सेक्टर्स। मंदी आने पर इन सेक्टर्स की ग्रोथ धीमी हो सकती है।
आईटी और फार्मा सेक्टर को झटका
भारत की प्रमुख आईटी और फार्मा कंपनियां अमेरिका में अपने व्यापार पर अत्यधिक निर्भर हैं। यदि अमेरिका में मंदी आती है, तो इन कंपनियों के लिए वहां से आने वाली कमाई प्रभावित होगी। इसका सीधा असर टीसीएस, इंफोसिस, विप्रो, सन फार्मा और डॉ. रेड्डी जैसी कंपनियों पर पड़ सकता है।
रुपये की कमजोरी बढ़ सकती है
अमेरिका में मंदी आने से डॉलर की मांग बढ़ सकती है, जिससे भारतीय रुपया कमजोर हो सकता है। यह स्थिति भारत के लिए चुनौतीपूर्ण होगी क्योंकि इससे आयात महंगा होगा और महंगाई दर पर दबाव बढ़ेगा।
कैसे बचा सकता है भारत खुद को?
भारत को अमेरिकी मंदी के प्रभाव से बचने के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत होगी—
- घरेलू निवेश को प्रोत्साहित करना – सरकार को उद्योगों में निवेश बढ़ाने के लिए नीतिगत सुधार करने होंगे, जिससे आर्थिक गतिविधियां जारी रहें।
- निर्यात बाजारों में विविधता लाना – अमेरिका पर निर्भरता कम करने के लिए अन्य देशों, खासकर यूरोप और एशिया में नए बाजार तलाशने होंगे।
- MSME सेक्टर को समर्थन देना – छोटे और मध्यम उद्योगों को सहारा देकर भारत की अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा जा सकता है।
- रुपये की स्थिरता बनाए रखना – भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को विदेशी मुद्रा भंडार का सही इस्तेमाल करना होगा ताकि रुपये की गिरावट को नियंत्रित किया जा सके।
अमेरिका में मंदी की आशंका तेजी से बढ़ रही है और इसके संकेत पहले से ही दिखने लगे हैं। अमेरिकी शेयर बाजार में गिरावट ने पूरी दुनिया में चिंता बढ़ा दी है। अगर अमेरिका इस मंदी से बच नहीं पाता, तो भारत समेत अन्य देशों पर भी इसका असर पड़ेगा। भारत को अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाए रखने के लिए घरेलू मांग, निर्यात और औद्योगिक उत्पादन पर ध्यान देना होगा ताकि वैश्विक मंदी का प्रभाव कम से कम हो।
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Income Tax भरने वालों के लिए राहत भरी खबर,ब्याज माफी का अधिकार अफसरों को मिला

Income Tax
Income Tax का बोझ उठाने वालों के लिए राहत की खबर है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (CBDT) ने टैक्सपेयर्स के लिए एक अहम फैसला लिया है, जिसके तहत अब कुछ विशेष स्थितियों में देय ब्याज की राशि को माफ या कम किया जा सकता है।
यह राहत ऐसे मामलों के लिए है, जहां टैक्सपेयर्स को टैक्स डिमांड के अनुसार देय टैक्स न चुकाने पर ब्याज चुकाना होता है। यह फैसला ब्याज की राशि को माफ करने के लिए कुछ सीमाएं तय करते हुए CBDT ने जारी किया है, जो निश्चित शर्तों के अधीन है।
इस निर्णय का सीधा असर उन लोगों पर पड़ेगा, जिनके पास देय टैक्स की बकाया राशि है और उन्हें ब्याज की भारी राशि चुकानी पड़ रही है।
CBDT द्वारा जारी नए सर्कुलर में इनकम टैक्स अधिकारियों को यह अधिकार दिया गया है कि वे कुछ शर्तों के तहत ब्याज की राशि को माफ करने का निर्णय ले सकते हैं। यह फैसला उन मामलों में लागू होगा, जहां टैक्सपेयर्स ब्याज की भारी रकम चुकाने में असमर्थ हैं, या कुछ अन्य विशिष्ट परिस्थितियों के कारण ऐसा करना उनके लिए मुश्किल है।
कैसे होता था ब्याज का हिसाब?
इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 220(2) के तहत यह व्यवस्था है कि अगर टैक्सपेयर को टैक्स डिमांड नोटिस (धारा 156 के तहत) प्राप्त होता है और वह उस निर्धारित अवधि में टैक्स का भुगतान नहीं कर पाता, तो उसे उस बकाया राशि पर ब्याज देना होता है।
यह ब्याज हर महीने के लिए एक प्रतिशत की दर से लगाया जाता है, जो सीधे-सीधे टैक्सपेयर्स की जेब पर अतिरिक्त बोझ बन जाता है। ऐसे में जिन टैक्सपेयर्स की आर्थिक स्थिति इस ब्याज को चुकाने में बाधक है, उनके लिए यह माफी एक बड़ी राहत मानी जा रही है।
किन अधिकारियों को मिलेगा ब्याज माफी का अधिकार?
CBDT ने इस नई नीति के तहत ब्याज माफी के लिए अलग-अलग स्तर के अधिकारियों के लिए सीमाएं निर्धारित की हैं। ब्याज माफी या कटौती का अधिकार प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर, चीफ कमिश्नर, प्रिंसिपल कमिश्नर और कमिश्नर रैंक के अधिकारियों को दिया गया है। इसके तहत निम्नलिखित स्तरों पर ब्याज माफी का प्रावधान किया गया है:
1. प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर: डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक की देय ब्याज राशि को माफ करने का निर्णय प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर रैंक के अधिकारी ले सकते हैं। इसका मतलब है कि अगर किसी टैक्सपेयर पर डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक का ब्याज बकाया है, तो उसकी माफी का निर्णय प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर स्तर के अधिकारी ही कर सकेंगे।
2. चीफ कमिश्नर: यदि देय ब्याज की राशि 50 लाख रुपये से डेढ़ करोड़ रुपये के बीच है, तो चीफ कमिश्नर रैंक के अधिकारी इस ब्याज को माफ करने या कम करने का निर्णय ले सकते हैं।
3. प्रिंसिपल कमिश्नर या कमिश्नर: 50 लाख रुपये तक के देय ब्याज की माफी का अधिकार प्रिंसिपल कमिश्नर या कमिश्नर रैंक के अधिकारियों को दिया गया है। यह व्यवस्था छोटे टैक्सपेयर्स को राहत देने के लिए की गई है, जिनके ऊपर ज्यादा बड़ा ब्याज नहीं है, लेकिन फिर भी वे इस ब्याज को चुकाने में मुश्किलों का सामना कर रहे हैं।
ब्याज माफी के लिए क्या होंगी शर्तें?
CBDT के सर्कुलर में ब्याज माफी की अनुमति केवल उन परिस्थितियों में दी गई है, जहां कुछ विशेष शर्तें पूरी होती हैं। ये शर्तें इस प्रकार हैं:
1. आर्थिक असमर्थता: अगर टैक्सपेयर पर इतनी बड़ी ब्याज राशि बकाया हो, कि उसे चुकाना बेहद कठिन हो। ऐसी स्थिति में अधिकारियों को यह अधिकार दिया गया है कि वे टैक्सपेयर की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन करते हुए ब्याज माफी पर विचार कर सकते हैं।
2. अपरिहार्य परिस्थितियां: अगर टैक्सपेयर किसी ऐसी परिस्थिति में है, जो उसके नियंत्रण में नहीं है, और इसी कारण से वह ब्याज नहीं चुका पा रहा है। यह परिस्थिति प्राकृतिक आपदा, किसी गंभीर बीमारी, या अन्य अप्रत्याशित घटनाओं के कारण हो सकती है, जो टैक्सपेयर को ब्याज चुकाने से वंचित कर रही हों। ऐसी स्थिति में अधिकारी ब्याज माफी पर विचार कर सकते हैं।
3. सहयोगपूर्ण व्यवहार: अगर टैक्सपेयर ने बकाया टैक्स की रिकवरी के प्रयासों में और असेसमेंट प्रक्रिया में अधिकारियों से पूरा सहयोग किया हो, तो ऐसे मामलों में भी ब्याज माफी पर विचार किया जा सकता है। यह माफी उन टैक्सपेयर्स के लिए हो सकती है, जिन्होंने सरकार के साथ सहयोगात्मक व्यवहार दिखाया हो और अपने बकाया का निपटान करने की मंशा जताई हो।
CBDT का उद्देश्य और उम्मीदें
CBDT का यह कदम टैक्स प्रणाली में सुधार और पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे न केवल उन टैक्सपेयर्स को राहत मिलेगी, जिनके ऊपर ब्याज का बड़ा बोझ है, बल्कि टैक्स अधिकारियों को भी ऐसी स्थितियों में निर्णय लेने की स्वतंत्रता मिलेगी, जहां ब्याज माफी से सरकार और टैक्सपेयर्स के बीच बेहतर तालमेल बन सकता है।
इस कदम से यह भी उम्मीद की जा रही है कि टैक्सपेयर्स में कर अनुपालन के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। ब्याज माफी की यह छूट उन टैक्सपेयर्स के लिए एक प्रोत्साहन हो सकती है, जो आर्थिक तंगी के चलते अपने टैक्स का भुगतान नहीं कर पा रहे हैं। सरकार की इस पहल से करदाताओं में भरोसा बढ़ेगा और उन्हें यह महसूस होगा कि सरकार उनकी कठिनाइयों को समझते हुए मदद के लिए तैयार है।
विशेषज्ञों की राय
टैक्स विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम टैक्सपेयर के हित में है। ब्याज माफी की इस नीति से कर प्रणाली में सुधार होगा और करदाताओं के लिए एक सहयोगात्मक माहौल बनेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे निर्णयों से टैक्सपेयर्स की आर्थिक स्थिति को समझने और उनकी समस्याओं का समाधान निकालने में मदद मिलेगी।
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